द न्यूज 9 डेस्क।शताब्दी वर्ष विशेष। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्थापना के शताब्दी वर्ष 100 साल को पूर्ण कर देश को नई उर्जा शक्ति प्रदान कर सदा समर्पित भाव से सेवा का संकल्प लेकर निःस्वार्थ कार्य करने वाले स्वयंसेवकों में जिनका भी योगदान समर्पण और सेवा संस्कार देखा जाए गर्व से छाती चौड़ी होती है।
आज हम आपकों सिहोरा के ऐसे स्वयंसेवक से रूबरू करा रहे है। जिनका समपर्ण और त्याग सिहोरा वासियों के लिए गौरव की बात होगी। शताब्दी वर्ष पर देहदान का त्याग का संकल्प लेकर सिहोरा की पावन भूमि को पुण्य कर दिया

आरंभ
सिहोरा की पावन भूमि पर 3 फरवरी 19661 को जन्मा एक नन्हा बालक जो बचपन से ही संघ की शाखा में अपने पिता जी, चाचा जी के कंधों पर बैठकर जाता है। और बचपन से समपर्ण, सेवा और संस्कार की शुरूआत होती है
सिहोरा के कालभैरव चौक निवासी स्वयंसेवक प्रमोद कुमार साहू लगभग 5 वर्ष की बाल आयु में ही अपने पिता मीसाबंदी एवं जबलपुर जिला संघ चालक पुरूषोत्तम लाल साहू एवं मीसाबंदी चूरामन साहू, किशन साहू के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिन्दी स्कूल में संघ शाखा में जाकर अपने बचपन के दिनों की शुरूआत करते है। अपने विचारों और अनुभवों को सांझा करते हुए कहते है। कि पहले और आज में कुछ नहीं बदला ना विचार, ना शाखाएँ, ना समपर्ण, ना सेवा, और ना संस्कार सब शताब्दी तक के सफर में पुराना जैसा ही है। जो अनंत काल तक रहेगा, 60 वर्ष संघ को समर्पित कर देहदान का संकल्प लेना आत्मशांति और अपने आप में उर्जावान महसूस करा रहा है। पिता जी एवं माता जी के समपर्ण ने मुझे और मजबूत बनाया।

आपातकाल और परिवारजनों की स्थितियां
प्रमोद जी ने आपातकाल के बताते हुए भावुक मन से बताया कि 25 जून 1975 को देश में आपातकाल थोप दिया गया। आपातकाल के दो वर्षों में देश की स्थिति काफी दुःखद हो गई थी। भारतीय संविधान और कानून में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट को ऐसे किसी भी संसोधन में जांच करने से रोक दिया गया था। 4 जुलाई 1975 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लोक संघर्ष समिति का गठन हुआ। समिति ने एक आपातकाल विरोधी संघर्ष का आयोजन किया जिसमें सत्याग्रह और एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों की कैद शामिल थी। सरसंघचालक बालासाहब देवरस को 30 जून को नागपुर स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पहले स्वयंसेवकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि इस असाधारण स्थिति में, स्वयंसेवकों का यह कर्तव्य है कि वे अपना संतुलन न खोएं, सरकार्यवाह माधवराव मुले और उनके द्वारा नियुक्त अधिकारी के आदेशानुसार संघ के कार्य को जारी रखें और जनसंपर्क, जन जागरुकता एवं जन शिक्षा को यथाशीघ्र अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वाह करने की क्षमता का निर्माण करें। और 20 जून, 1975 को कांग्रेस ने एक विशाल रैली की, जिसमें देवकांत बरुआ ने घोषणा की, ष्इंदिरा तेरी सुबह की जय, तेरी शाम की जय, तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय, और इस जनसभा के दौरान इंदिरा गांधी ने कहा कि वह प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देगी।
25 जून 1975 को रामलीला मैदान में भारी भीड़ के सामने जयप्रकाश नारायण ने कहा, देश की खातिर सभी विरोधी पक्षों को एकजुट होना चाहिए, अन्यथा यहां तानाशाही स्थापित हो जाएगी और लोग परेशान होंगे। लोक संघर्ष समिति के सचिव नानाजी देशमुख ने कहा, सभी जगह इंदिराजी के इस्तीफे की मांग को लेकर गांवों में बैठकें होंगी और 29 जून से राष्ट्रपति आवास के सामने दैनिक सत्याग्रह होगा. उसी शाम जब रामलीला मैदान में विशाल जनसभा से हजारों की संख्या में लोग लौटे तो ऐसा लग रहा था मानो कोने-कोने से मांग हो कि ष्प्रधानमंत्री इस्तीफा दें और सच्चे गणतंत्र की परंपरा का पालन करें. (पी.जी. सहस्रबुद्धे, मानिकचंद्र बाजपेयी, इमरजेंसी स्ट्रगल स्टोरी (1975-1977), पृष्ठ 1)
15 और 16 मार्च 1975 को, नई दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान ने संविधान में आपातकाल और लोकतंत्र के विषय पर एक चर्चा की मेजबानी की। इस चर्चा के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री कोका सुब्बाराव ने कहा, ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जब राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल संवैधानिक लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए एकजुट हों। (दीनदयाल संस्थान, रिवोक इमरजेंसी, पृष्ठ 17) कौन भविष्यवाणी कर सकता था कि ऐसी स्थिति केवल तीन महीने बाद उत्पन्न होगी? (पी.जी. सहस्रबुद्धे, मानिकचंद्र बाजपेयी, इमरजेंसी स्ट्रगल स्टोरी (1975-1977), पृष्ठ 40)

आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करने वाले कुल 1,30,000 सत्याग्रहियों में से 1,00,000 से अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थे। मीसा के तहत कैद 30,000 लोगों में से 25,000 से अधिक संघ के स्वयंसेवक थे। आपातकाल के दौरान, राष्ट्रीय द. स्वयंसेवक संघ के करीबन 100 कार्यकर्ताओं की जान चली गई, गणतंत्र को स्थापित करने के लिए, जिनमें से अधिकांश कैद में और कुछ बाहर थे। संघ की अखिल भारतीय व्यवस्थापन टीम के प्रमुख श्री पांडुरंग क्षीरसागर उनमें से एक थे। (कृतिरूप संघ दर्शन, पृष्ठ 492)
वहीं कैद में रहे स्वयंसेवकों के परिवारजनों के सामने भोजन, बच्चों के पालन पोषण के साथ पढ़ाई लिखाई का संकट आन पड़ा पर एक मजबूत डोर में बंधे संघ परिवारों ने संघर्ष और समपर्ण भाव के सामने अपने आप को टूटने नहीं दिया और संघर्ष से शताब्दी का सफर पूरा किया।

आपातकाल के खिलाफ संघ का विरोध
समाचार पत्रों और पत्रिकाओं, मंचों, डाक सेवा और निर्वाचित विधायिकाओं सहित संचार के सभी रूपों को रोक दिया गया था। ऐसे में सवाल यह था कि जन आंदोलन का आयोजन कौन करे। यह केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही कर सकता है। संघ के पास पूरे देश में शाखाओं का अपना नेटवर्क था और वह केवल इस क्षमता में सेवा कर सकता था। लोगों के बीच सीधे संपर्क के माध्यम से संघ जमीन से जुड़ा हुआ है। जनसंपर्क के लिए यह कभी भी प्रेस या मंच पर निर्भर नहीं रहा। नतीजा यह हुआ कि मीडिया के बंद का असर जहां दूसरी पार्टियों पर पड़ा, वहीं संघ पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। अखिल भारतीय स्तर पर इसके केंद्रीय निर्णय प्रोत, विभाग, जिला और तहसील स्तरों के माध्यम से गाँव तक पहुंचते हैं। आपातकाल की घोषणा के समय और आपातकाल की समाप्ति के बीच संघ की इस संचार प्रणाली ने कुशल और सटीक तरीके से काम किया। संघ कार्यकर्ताओं के घर भूमिगत आंदोलन के ताने-बाने के लिए सबसे बड़ा वरदान साबित हुए, और परिणामस्वरूप, खुफिया अधिकारी भूमिगत कार्यकर्ताओं का पता लगाने में असमर्थ रहे। (पी486-87, एच.वी. शेषादिद्र, कृतिरूप संघ दर्शन)

अपनी गिरफ्तारी से पहले, श्री जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता श्री नानाजी देशमुख को लोक संघर्ष समिति आंदोलन सौंपा था। जब नानाजी देशमुख को गिरफ्तार किया गया, तो नेतृत्व सर्वसम्मति से श्री सुंदर सिंह भंडारी को दिया गया मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, साथ ही साथ राजनीतिक प्रतिरोध के किसी भी अन्य समूह, खुलेआम सहयोग और समर्थन करने के लिए तैयार थे, जो आपातकाल का विरोध करते थे और जोश और ईमानदारी के साथ शैतानी शासन के खिलाफ काम करने में सक्षम थे, जो शासन घोर दमन और झूठ का सहारा लेता है, अच्युत पटवर्धन ने लिखा। पुलिस के अत्याचारों और बर्बरता के बीच आंदोलन का नेतृत्व करने में स्वयंसेवकों की वीरता और साहस को देखकर मार्क्सवादी सांसद श्री एके गोपालन भी भावुक हो गए। उन्होंने कहा था, इस तरह के वीरतापूर्ण कृत्य और बलिदान के लिए उन्हें अदम्य साहस देने वाला कोई उच्च आदर्श होना चाहिए। (9 जून, 1979, इंडियन एक्सप्रेस)

आरएसएस ने लोकतंत्र के चार स्तंभों की रक्षा करने, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान हर एक की सहायता करने, प्रत्येक के व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र को विकसित करने और पर्यावरण में सुधार के लिए खुद को बार-बार साबित किया और करता रहेगा।
दायित्व और निर्वहन
श्री साहू से विचार सांझा करते हुए बताया कि नृसिंहपुर में जिला प्रचारक के रूप में सर्वप्रथम संघ में सेवा का सौभाग्य मिला फिर प्रचारक,जिला जबलपुर विभाग प्रचारक, और सागर छिंदवाड़ा में विभाग प्रचारक के रूप में सेवाएँ देकर विश्व हिन्दु परिषद् मध्यक्षेत्र सह धर्म प्रसार प्रमुख्य के रूप में सेवा का अवसर प्राप्त हुआ।

हिंदुत्व, राष्ट्र भक्ति, बलिदान, समर्पण और त्याग-तप का प्रेरणा पुंज है संघ
विजयोत्सव के महापर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थापना के शताब्दी वर्ष ’संघ शताब्दी विजयादशमी पर प्रमोद जी द्वारा परिवार के सदस्यों के साथ शस्त्रपूजा के कार्यक्रम में संघ शताब्दी पर ’देहदान और आंखों के समर्पण का संकल्प लिया। देहदान चिकित्सा क्षेत्र में सहायक होगा। उन्होने बताया कि मृत्यु के पश्चात मेरी ’देह मेडिकल कॉलेज जबलपुर को समर्पित होगी तथा आंखें दादा वीरेंद्र पुरी आई बैंक जबलपुर को प्रदान की जायेगी इस समर्पण में पारिवारिक जानों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है उनकी सहमति के लिए कोटिश धन्यवाद प्रेषित किया। उन्होने कहा कि हिंदुत्व, राष्ट्र भक्ति, बलिदान, समर्पण और त्याग-तप का प्रेरणा पुंज है संघ और अपने अंदाज में कहते नजर आए तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा

आपातकाल केवल राजनीति के दमन का नहीं, बल्कि परिवारों की परीक्षा का भी दौर था। – प्रमोद जी की जुवानी
जबलपुर जिले के सिहोरा का साहू परिवार इस परीक्षा में खरा उतरा। इस परिवार के तीन सगे भाइयों पुरुषोत्तम लाल, चूरामन और किशनलाल साहू – को एक ही सप्ताह में मीसा के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इनके 23 सदस्यों वाले संयुक्त परिवार पर अचानक विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा, पर राष्ट्र और संघ के प्रति निष्ठा नहीं डगमगाई।

एक सप्ताह में तीनों भाई हो गए थे गिरफ्तार
प्रमोद जी ने बताया सिहोरा के काल भैरव पार्क में रहने वाले स्वर्गीय भगवानदास साहू और स्वर्गीय गेंदाबाई साहू का परिवार अपने संस्कार और प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता था। 27 जून 1975 को सबसे छोटे पुत्र किशनलाल साहू को पुलिस ने घर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। चार दिन बाद पुलिस दोबारा घर आई और बाकी दो भाइयों को भी पकड़ना चाहा, पर उन्होंने थोड़े समय की मोहलत मांगी। दो घंटे बाद पुरुषोत्तम लाल जी और चूरामन जी स्वयं थाने पहुंचे और गिरफ्तारी दे दी।
तीनों भाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। किशनलाल जी नगर कार्यवाह, पुरुषोत्तम जी तहसील कार्यवाह और चूरामन जी दायित्वन स्वयंसेवक के रूप में कार्यरत थे। घर का पूरा खर्च तीनों भाई मिलकर उठाते थे, इसलिए गिरफ्तारी के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगा गई।
दादी ने उठाई घर की जिम्मेदारी और डिगा नहीं परिवार
घर में 23 सदस्यों का बड़ा संयुक्त परिवार था। तीनों भाइयों के जेल जाने के बाद दादी गेंदाबाई ने खुद आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने बड़े पोते विनोद साहू के साथ मिलकर एक छोटी सी दुकान शुरू की ताकि घर का खर्च चल सके। कुछ दिन तक दुकान चली, फिर सिहोरा नगर पालिका ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर उसे तोड़ दिया। दुकान बंद होते ही परिवार फिर संकट में आ गया, पर हार नहीं मानी। इस कठिन समय में संघ के प्रचारकों, स्वयंसेवकों और कुछ व्यापारियों ने परिवार की हर संभव मदद की।
पुलिस धमकियों के बीच मिला सहयोग
पुरुषोत्तम लाल के पुत्र प्रमोद साहू जो लंबे समय तक संघ के प्रचारक रहे, बताते हैं, जब पिताजी जेल गए, तो उन्होंने अंदर से ही कटनी के एक व्यापारी को पत्र लिखा कि घर पर सामान भेजते रहिए, हम छूटकर हिसाब कर देंगे। पुलिस को जब पता चला, तो व्यापारी के घर पहुंची और धमकाया, पर व्यापारी ने साहस से कहा कि वे सज्जन लोग हैं, सहायता की जरूरत है। इसके बाद पुलिस लौट गई।
प्रमोद जी ने आगे बताया कि पिताजी के जेल जाने के बाद मोहल्ले के ज्यादातर लोग घर आना छोड़ गए। यहां तक कि एक कांग्रेसी नेता दादी के पास आए और बोले कि भैया लोगों से माफीनामा लिखवा दो, मैं छुड़वा दूंगा। इस पर दादी ने दृढ़ता से कहा कि मेरे बेटे भले पूरी जिंदगी जेल में काट दें, लेकिन माफी नहीं मांगेंगे।

जेल की कठिनाई और निष्ठा
जेल में तीनों भाइयों को बेस्वाद भोजन और ठंड में बिना पर्याप्त कपड़ों के दिन काटने पड़े। जबलपुर जेल भर जाने पर किशनलाल जबलपुर जेल में रहे और पुरूषोत्तम जी एवं चूरामन जी को सिवनी जेल भेज दिया गया, जहां कभी संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर भी कैद रहे थे। मीसा की पूरी अवधि खत्म होने पर ही तीनों भाइयों को रिहा किया गया।
चौथी पीढ़ी भी संघ के मार्ग पर
साहू परिवार की यह परंपरा आज भी जारी है। परिवार की चौथी पीढ़ी संघ कार्य में सक्रिय है। पुरुषोत्तम लाल साहू का 8 नवंबर 2005 को और किशनलाल साहू का 23 अगस्त 2004 को निधन हो गया। चूरामन साहू आज 91 वर्ष के हैं, शरीर कमजोर है, दृष्टि और स्मरणशक्ति समाप्त हो चुकी है, फिर भी उनके हृदय में संघ के प्रति वही निष्ठा जीवित है।
गेंदाबाई का चरित्र देता है प्रेरणा
सिहोरा का साहू परिवार आपातकाल के इतिहास में उस उजले पृष्ठ की तरह दर्ज है जिसने सिद्ध किया कि सच्चा राष्ट्रधर्म न किसी सत्ता के डर से डगमगाता है, न किसी अभाव से टूटता है। तीन सगे भाइयों का यह त्याग और एक दृढ़ नारी गेंदाबाई का साहस लोकतंत्र की उस मशाल की तरह है जो आज भी अगली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है।

राष्ट्र निर्माण और उद्देश्य
राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा जैसी सरल, जीवंत कार्यपद्धति यही संघ की सौ वर्षों की यात्रा का आधार बने। इन्हीं स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को गढ़ा, जो विभिन्न क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने गठन के साथ राष्ट्र निर्माण का विराट उद्देश्य लेकर चला। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघ ने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण रास्ता चुना और इस चलने के लिए जो कार्यपद्धति चुनी वो थी नित्य-नियमित चलने वाली शाखाएं। संघ शाखा का मैदान, एक ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां से स्वयंसेवक की अहम् यात्रा शुरू होती है। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की यज्ञवेदी हैं।

आरएसएस का जन्म उस समय हुआ जब भारत स्वतंत्रता संग्राम के दौर से गुजर रहा था। विदेशी शासन, सामाजिक बिखराव, जातिगत भेदभाव और राष्ट्रवाद की कमजोर होती भावना देश के लिए चिंता का विषय थे। तब वर्ष 1925 में महाराष्ट्र के नागपुर में परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है, समाज को आत्मबल, एकता और राष्ट्रभक्ति के संस्कारों से ओतप्रोत करना भी जरूरी है। उनका उद्देश्य एक ऐसा संगठन बनाना था जो जाति, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर राष्ट्र को सर्वाेपरि माने। संघ की शाखाओं के माध्यम से अनुशासन, चरित्र निर्माण, सेवा और राष्ट्रप्रेम की भावना को विकसित करने का प्रयास किया गया।
संघ ने विचार शक्ति से राष्ट्र को नई दिशा दी है। संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने पर पूज्य सरसंघचालक मोहनराव भागवत के उद्बोधन में अतीत से लेकर भविष्य तक का पूरा विचार स्पष्ट झलकता है। असंख्य स्वयंसेवकों ने निष्काम भाव से अपने जीवन को संघ के यज्ञ में स्वयं को आहूत किया और यह राष्ट्र अनुष्ठान भारत माता के निमित्त एक शताब्दी पूर्ण होने पर भी अनवरत और अविरल जारी है। संघ एक दिव्य शक्ति के रूप में अनन्तकाल तक स्थापित, सक्रिय और सक्षम रहेगा, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, अपितु शपथ से शुद्ध सत्य है। संघ का प्रत्येक स्वयं सेवक इसलिए इसे ईश्वरीय कार्य मानता है। इसी भाव से ध्वज प्रणाम करते आ रहे लाखों स्वयंसेवक इस महान संगठन के प्राण और सनातन उसकी आत्मा हैं।
पूज्य सर संघ संचालक आदरणीय मोहन राव भागवत द्वारा व्याख्यानमाला के उद्बोधन एवं जिज्ञासा समाधान सत्र में संघ को क्या करना-दायित्व बोध, नागरिक कर्तव्य, सामाजिक समरसता, विभिन्न धर्म संप्रदाय के लोगों में सद्भाव एवं संघ हिंदू जागरण करता है और हिंदुओं का संगठन है, यह मजबूती से रखा है।
यह शताब्दी वर्ष केवल एक संगठन की उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के सौ वर्षों की यात्रा का भी प्रतीक है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है। हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने मिल रहा है।

संघ के पंच परिवर्तन, स्व बोध, सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण ये संकल्प हर स्वयंसेवक के लिए देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को परास्त करने की बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। हर आपदा में संघ के स्वयंसेवक अपने सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े रहते रहे। यह केवल राहत नहीं थी, यह राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का कार्य था। खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना ये हर स्वयंसेवक की पहचान है। आज भी प्राकृतिक आपदा में हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं। समाज में सदियों से घर कर चुकी जो बीमारियां हैं, जो ऊंच-नीच की भावना है, जो कुप्रथाएं हैं, ये हिन्दू समाज की बहुत बड़ी चुनौती रही हैं। ये एक ऐसी गंभीर चिंता है, जिस पर संघ लगातार काम करता रहा है। डॉक्टर साहब से लेकर आज तक, संघ की हर महान विभूति ने, हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। परम पूज्य गुरु जी ने निरंतर न हिन्दू पतितो भवेत की भावना को आगे बढ़ाया। इस दशकों में आरएसएस ने भारत की सामाजिक बुनियाद को मजबूत किया है, उसकी संप्रभुता की रक्षा की है, कमजोर वर्गों को सशक्त बनाया है और भारतीय सभ्यता के मूल्यों को संजोए रखा है। वर्तमान में आरएसएस निरूस्वार्थ सेवा का जीवंत प्रतीक बन गया है। आरएसएस आगामी शताब्दी वर्ष में देश की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और राष्ट्र निर्माण के साथ जोडऩे में अहम भूमिका निभाएगा।
एक ऐसा सामाजिक, सांस्कृतिक विश्व का सबसे बड़ा संगठन जो सौ साल की आयु में भी निर्बाध गति से आगे बढ़ रहा है। इसका कारण है, यह जगह चरित्र निर्माण का है, यहां हर व्यक्ति स्वहित का परित्यागकर राष्ट्रहित की चिंता करता है। यहां किसी का अपना कुछ नहीं, सबकुछ राष्ट्र के लिए समर्पित है। यही कारण है कि यहां उच्च दायित्व पर होने के बाद भी किसी में भी अहम नहीं है, क्योंकि जहां “मैं” नहीं, वहां अहम नहीं हो सकता। यहां हर व्यक्ति में “हम” की भावना होती है। सब एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। इसी कारण तो इस एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों के समूह को परिवार कहा जाता है। जिसे हम संघ परिवार भी कहते हैं।
संघ के 45 प्रांत
दूसरी ओर संघ में पूर्णकालिक स्वयं सेवक प्रचारक के तौर पर काम करते हैं। प्रचारक अपने गृह जनपद को छोड़कर दूर-दूर तक जहां पर नियुक्ति हो वहां जाते हैं। वहां संघ कार्यालय ही इनका ठौर होता है। संघ की दृष्टि से पूरे राष्ट्र को 45 प्रांतों में बांटा गया है। प्रांत से ऊपर क्षेत्र होता है, यह 11 क्षेत्र हैं। इसके ऊपर केंद्र होता है।
संघ शिक्षण वर्ग
समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा के समय-समय पर विभिन्न संघ शिक्षण वर्ग भी लगता है, जहां पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें दीपावली वर्ग तीन दिनों का होता है। यह तालुका या नगर स्तर पर आयोजित होता है। शीत शिविर या हेमंत शिविर भी तीन दिन तक जिला या विभाग स्तर पर आयोजित किया जाता है। यह हर वर्ष दिसंबर माह में आयोजित होता है। निवासी वर्ग शाम से सुबह तक होता है। यह हर महीने शाखा, नगर या तालुका द्वारा आयोजित होता है।

संघ शिक्षा वर्ग
इसमें कुल चार प्रकार के वर्ग होते हैं, यह सभी उच्च स्तरीय प्रशिक्षण हैं। इसमें प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष हैं। प्राथमिक वर्ग एक सप्ताह का होता है। प्रथम वर्ग और द्वितीय वर्ग 20-20 दिन के होते हैं, जबकि तृतीय वर्ग 25 दिनों का होता है। प्राथमिक वर्ग का आयोजन सामान्यतया जिला करता है। वहीं प्रथम संघ शिक्षा वर्ग या प्रथम वर्ष का आयोजन सामान्यतरू प्रांत करता है। द्वितीय संघ शिक्षा वर्ग अथवा द्वितीय वर्ष का आयोजन क्षेत्र करता है, तृतीय वर्ष या तृतीय संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन हर साल नागपुर में ही होता है।

संघ के बदलाव के बारे में तीसरे सरसंघचालक ने कहा था, जीवित प्राणी में जरूर होता है बदलाव
अन्य संस्थाओं की तरह संघ में भी बहुत बदलाव आया है। इससे संघ कभी परहेज भी नहीं करता। पहले खाकी हाफ पैंट होता था, अब व फुलपैंट हो गया है। इस तरह कई कार्य पद्धति में बदलाव आए हैं। अब एक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी संघ का आनुषांगिक संगठन है, जिसमें राष्ट्रवादी मुस्लिम स्वयं सेवक हैं और दूसरों को राष्ट्र के प्रति प्रेम की शिक्षा देते हैं। संघ के तीसरे सरसंघचालक बाला साहेब देवरस ने अक्टूबर 1976 में विजयादशमी उत्सव पर नागपुर में कहा था, “कुछ लोगों द्वारा कहा जा रहा है कि संघ बदल रहा है और इसे आगे भी बदलना है। सभी जीवित प्राणी अपने स्वाभाविक रूप में बदलते हैं। यह उनके विकास का संकेत है। जो बदल नहीं रहा है, वह जीवित नहीं है, मृत है। पर इस बदलाव को अपनी जीवनधारा की शिराओं को काटकर नहीं अपनाया जा सकता है।
प्रचार प्रमुख ने लिखा है, संघ का उद्देश्य है समाज को मजबूत करना
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख परमपुज्य सुनील आंबेकर अपनी किताब ‘आरएसएस 21वीं सदी के लिए रोडमैप’ में लिखते हैं कि संघ समाज पर शासन करने वाली एक अलग शक्ति नहीं बनना चाहता और उसका मुख्य उद्देश्य समाज को मज़बूत करना है। ‘संघ समाज बनेगा’ एक नारा है, जो आरएसएस में बार-बार लगाया जाता है।
सरसंघचालक ने कहा था, कार्य प्रणाली है संघ और कुछ नहीं
मौजूदा सरसंघचालक परमपूज्य मोहन भागवत ने कहा है कि संघ एक “कार्य प्रणाली है और कुछ नहीं”. उनके मुताबिक़, आरएसएस “व्यक्ति निर्माण का काम करता है।”.शाखा संघ की आधारभूत संगठनात्मक इकाई है, जो उसे ज़मीनी स्तर पर एक बड़ी मौजूदगी देती है। शाखा वह जगह है, जहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को वैचारिक और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है।
80 संगठन हैं आरएसएस के समूह में, करते राष्ट्रहित का काम
यह भी कहा जा सकता है कि आरएसएस कई संगठनों का समूह है। इसके तहत वर्तमान में 80 से अधिक आनुषांगिक या समविचारी संगठन हैं। यहां भी संघ की भांति ही विभिन्न स्तरों पर पूर्णकालिक स्वयं सेवक होते हैं और उनकी नियुक्ति प्रचारक के तौर पर होती है। इनमें विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में काम काम करता है, जिसके तहत पूरे भारत में 21,000 से अधिक स्कूलों का संचालन हो रहा है। वहीं सेवा भारती वंचितों और गरीबों के लिए काम करने वाला संगठन है। भारतीय मजदूर संघ श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम करता है। वहीं संस्कार भारती कलाकारों के लिए काम करने वाला संगठन है। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम वनवासियों के कल्याण के लिए काम करने वाला संगठन है, जो उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाएं प्रदान करता है।
ये भी प्रमुख संगठनों में शामिल
इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, स्वदेशी जागरण मंच, राष्ट्रीय सिख संगत, हिन्दु युवा वाहिनी, भारतीय किसान संघ आदि भी इनके प्रमुख संगठन है। बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या आंदोलन के समय प्रमुख भूमिका निभायी थी।

कई बार लगे प्रतिबंध, लेकिन निखरता रहा संघ
संघ की स्थापना के बाद कई बार उसे अग्नि परीक्षा से भी गुजरना पड़ा। संघ के पदाधिकारी और स्वयं सेवकों को प्रताड़नाएं भी दी गयीं, लेकिन संघ कभी अपने विचारों से डिगा नहीं, टूटा नहीं, हमेशा अडिग रहा और प्रतिबंध रूपी आग में तपने के बाद और उसमें निखार ही आता चला गया।
संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गोलवलकर को गिरफ़्तार कर लिया गया। यह प्रतिबंध एक साल तक लगा रहा। दूसरी बार आपात काल के समय इंदिरा गांधी ने 1975 में प्रतिबंध लगाया था, उस समय भी आरएसएस के प्रमुख लोगों को प्रताड़ना झेलनी पड़ी। स्वयं सेवक जेलों में ठूस दिये गये। यह प्रतिबंध साल 1977 में आपातकाल के ख़त्म होने के साथ ही हट गया। साल 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन जून 1993 में बाहरी आयोग ने इस प्रतिबंध को अनुचित माना और सरकार को उसे हटाना पड़ा।

निःस्वार्थ सेवा ही व्यक्ति को स्वयं सेवक बनाती हैं
श्री साहू ने बताया कि संघ निःस्वार्थ देश और समाज के लिए समर्पित रहा है यहां किसी चाह और स्वार्थ की इच्छा शक्ति रखकर व्यक्ति कभी सच्चा स्वयं सेवक नहीं बन सकता ।









