सच की आवाज़.

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पत्रकार की हत्या, आखिर सच दिखाना क्या इतना मंहगा है। फर्ज ही तो निभाया है। तो क्या मार डालोगे,

द न्यूज 9 डेस्क। डीजिटल डेस्क।

हम अमन पसंद हैं हमारे शहर में दंगा रहने दो।
लाल हरे में हमें मत बांटों हमारे छत पर तिरंगा रहने दो।।
सच दिखाना या सच लिखना और आईना दिखाना क्या इतना भी मंहगा हो सकता है। और सिस्टम से सिस्टम के लिए लड़ना कौन सी गलत बात है। हमारा क्या कसूर हमनें भी तो अपना फर्ज निभया है।
आज सारे मिड़िया जगत में एक शोक की लहर हैं और उसका कारण हैं हमारे साथी और एनडीटीवी के लिए पत्रकारिता करने वाले और बस्तर जंशन नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकार मुकेश चंद्राकर की एक सड़क ठेकेदार सुरेश चंद्रकार ने हत्या कर दी गई ।
पहले तो आपको जानकारी के लिए बता दे की मुकेश चंद्राकर कौन थे। तो जानकार आप हैरान होगें की यह वही बीजापुर के पत्रकार मुकेश है जिसने वर्ष 2021 में माओवादियों द्वारा अपहृत सीआरपीएफ जवानों की रिहाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और उस सीआरपीएफ के जवान को माओवादियों के चंगुल से समझौता कराकर अपनी गाड़ी में बैठाकर सुरक्षित वापस लाने में अहम भूमिका निभाई थी, और 28 साल के मुकेश ऐसे इलाकों में निड़र, निर्भिक, और निस्पक्ष पत्रकार थे। जिन्होने अनेकों बार ऐसी पत्रकारिता भी की जहां पहुंच पाना तक संभव नहीं था। परंतु गत शाम मुकेश की हत्या की खबर मिली जिससे सारे पत्रकारिता जगत में शोक व्याप्त है।
परंतु बात की जाए युवा पत्रकार मुकेश की तो उनकी गलती क्या थी, यह कि वो सिस्टम से सिस्टम के लिए लड़ते थे। और उन्होने बस्तर के ही ठेकेदार सुरेश चंद्रकार द्वारा बनाई गई 120 करोड़ की सड़क की पोल खोली थी, जिसपर वहां के कलेक्टर द्वारा ठेकेदार सुरेश चंद्रकार को उस सड़क को खोदकर फिर बनाने को कहा था। जिसपर बोखलाए ठेकेदार के भाई ने मुकेश को 1 जनवरी की शाम मिलने बुलाया था। ओर उसके बाद से ही मुकेश लगातार लापता थे। और मुकेश के बड़े भाई योगेश द्वारा लगातार उनकी तलाश की जा रही थी और थाने में उनके अपहरण की आशंका जताकर सूचना दी थी, जिसके बाद से पुलिस लगातर तलाश कर रही थी और पुलिस को मिले कुछ इनपुट के आधार पर संदेही सुरेश चंद्रकार के घर की तलाशी के दौरान ही नव निर्मित सैप्टिक टैंक में उनका शव बरामद हुआ हैं। और फिलहाल पुलिस मामले में और अलग अलग एंगल से भी जांच कर रही है।
अब बात की जाए अगर आज के दौर में पत्रकारिता की तो बड़े स्तर पर बड़े पत्रकारों को निशाना बनाया जाता हैं और छोटे और देहात इलाकों में छोटे पत्रकारों को निशाना बनाया जाता हैं और उसका मुख्य कारण यही रहा है। कि सिस्टम में रहकर सिस्टम के साथ और सिस्टम खिलाफ लड़ना आसान नहीं है। क्योंकि जब जब जरूरत पड़ी हैं चाहे वह आम आदमी हो या राजनेता हो, कोई अधिकारी हो वह लड़ता सबके लिए रहा पर आज बात आती हैं। जब पत्रकारों पर हो रहे हमलों की तो उनके लिए कोई नहीं लड़ना चाहता,  खैर कोई नहीं मुकेश ना सही कोई तो उस कलम को फिर थामेगा। और लड़ाई जारी रखेगा।
जय हिन्द

 

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