द न्यूज 9 डेस्क।जबलपुर। सिहोरा। एक तरफ सरकार अपनी योजनाओं का ढ़िढोरा पीट रही और महिला एवं बाल विकास और बाल सरंक्षण को बढ़ावा देने की बात कर रही, वहीं दूसरी तरफ अभी हाल ही में कोरोना के बाद निर्मित आंगनबाड़ियां नौनिहालों के जीवन और उनके बचपन से खुलेआम खिलवाड़ पर उतारू हैं और इनका जिम्मेदार कौन यह ढ़िढोरा पीटती सरकार, या महिला बाल विकास परियोजना के जिम्मेदार अधिकारी या इनकों बनाने वाला नगर प्रशासन, या बनाने वाले सरकारी ठेकेदार निर्माण एजेंसी, या उन नन्हे बच्चों का दोष जो कुछ जानते नहीं समझते नहीं और चुपचाप मौन सब देखते भी है परंतु बता नहीं पाते या आंगनबाडियों में बच्चों को भेजने वाले माता पिता यह सवाल लाजमी है। क्योकि जिस वास्तविकता को आज आप देखेगे और पढेगे तो सारे सवालों के जबाव भी मिल जाएगे क्योकि सरकार ने तो आंगनबाड़ी बनवाने के लिए सरकारी टेंडर निकाले और नगर प्रशासन ने उन भरे गए टेंडरों के आधार ठेकेदार और निर्माण एजेंसियों को आंगनबाडियों के निर्माण का काम भी सौंप दिया और आंगनबाडियों का निर्माण भी हुआ और निर्माण के बाद आंगनबाड़ियों को संभालने और संचालित करने वाले विभाग को सौंप भी दिया गया परंतु उन निर्मित आंगबाडियों की वास्तविक हालत और उन आंगनबाडियों में उपलब्ध सुविधाएँ और उपलब्ध संसाधनों और संचालित आंगनबाडियों के हालातों और बचपन से खेलने वालों की भी कार्यप्रणाली और निर्माण से लेकर संभालने तक में दोषी कौन आप खुद पहचान जाएगें। और उनके इन जिम्मेदारी वाले कार्य की जितनी सराहना की जाए कम होगी। कौन कितना जिम्मेदारी से कार्य करता है और किसने अपने कार्य में कितनी जिम्मेदारी दिखाई और कागजों पर कौन कितनी जिम्मेदारी से कार्य करता होगा और वास्तविकता क्या है। साफ तस्वीरों में झलकता है। इसे भ्रष्टाचार, लीपापोती और बच्चों के बचपन पर डांका कहना क्या गलत होगा।
क्या है। मामला
जबलपुर जिले की तहसील सिहोरा अंतर्गत सरकार द्वारा सरकारी ठेकेदारों से ठेके पर आंगनबाडियों का निर्माण कराया गया निर्माण के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग को सौंप दिया गया परंतु सिहोरा शहरी क्षेत्र में कोरोना महामारी के बाद बनी इन आंगनबाडियों में हालात बत्तर है। क्योंकि कहीं छपाई गिर रही तो कहीं टाईल्सें धस गई तो कही पर्याप्त सुविधाएँ और संसाधनों का आभाव है तो कहीं जहरीले सांपो से आंगनबाडियां जूझ रही तो कहीं बाल हितैषी शौचालय ही धस गया या कहीं बाल हितैशी शौचालयों का निर्माण ही नहीं हुआ तो कहीं बच्चों की पहंुच से ही आंगनबाडियां दूर बनवा दी गई तो कहीं दान और चंदे पर आंगनबाड़ी संचालित है। कहीं पूरी आंगनबाड़ी ही बच्चों के किसाब से नहीं है। तो कहीं देखने सुनने वालों को भी जानकारी के बाद फर्क नहीं पड़ा मौखिक शिकायतें तो हुई पर सबके कार्याे के प्रति बफादारी वया करती है। कि इसका जिम्मेदार कौन पता नहीं, निर्माण कराने वाली सरकार, नगर प्रशासन, सरकारी इंजीनियर, या सरकारी ठेकेदार निर्माण एजेंसी, या देखभाल करने वाला विभाग क्योकि सरकारी खजाने से होली किसने खेली अगर जांच होगी तो पर्दा खुद उठ जाएगा।
अभी हाल ही में गत दिवस सिहोरा शहरी क्षेत्र के वार्ड क्रं 02 की आंगनबाड़ी और वहां के मौजूदा हालातों से आप परिचित हुए होंगे और परिचित नहीं हुए नीचे लगी ख़बर पर नजर मार लीजियेगा और अब आप सिहोरा शहरी क्षेत्र के वार्ड क्रं 10, 11, 12 और वार्ड क्रं 15 की आंगबाडियों के मौजूदा हालातों से भी रूबरू होकर समझिए की क्या ऐसे में बाल विकास संभव है। या इन आंगबाडियों में सीधा मौतों का इंतजाम किया गया है।

वाड क्रं 10 की आंगनबाड़ी के मौजूदा हालात
वार्ड क्रं 10 में स्थित आंगनबाड़ी का संचालन पूर्व में कुररिया शाला में होता जो बाद में मंगल भवन में संचालित होने लगी जहां आएदिन कोई ना कोई कार्यक्रम आयोजित होते है। यहां मौजूदा हालातों को देखा गया तो है। सर्वप्रथम नन्हे बच्चों के हिसाब से प्रवेश द्वार के नाम पर सीढ़िया है।

बच्चों को प्लास्टिक के गुम्मे से पानी पिलाया जाता है। जिससे नन्हे बच्चों को बिमारियों डायरिया का तो पूरा खतरा है। दिवारें खाली पड़ी है। और उनवर काले मार्कर पैन से बच्चों को प्रारंभिक ज्ञान देने के लिए अंग्रेजी वर्ण माला और गिनती लिखी गई है।


वार्ड क्रं 11 की आंगनबाड़ी पूर्व में किराया के भवन पर संचालित थी जो कोरोना के बाद वार्ड में ही पानी टंकी के पास निर्मित भवन में संचालित होने लगी परंतु इस आंगनबाड़ी में निर्माण एजेंसी ने ऐसा कार्य किया कि छत टपक रही है।

प्रवेश द्वारा ही खतराभरा हैं जहां बच्चों को आना जाने में तकलीफ जरूर होती होगी। पानी पीने का कंटेनर फूटा हुआ है। शौचालय के छत में तक में काई लग गई और शौचालय में बच्चों के हिसाब से किया गया निर्माण तो कहीं दूर दूर तक नहीं दिखा,

ना पानी की टंकी आजतक साफ हुई और विभाग ने जो टेबल कुर्सी दिए उनको आप तस्वीरों में देख लीजिए, डस्टबिन तो दिवार किनारे बना है।

विभाग रिकार्ड संधारित करने रजिस्टर तक उपलब्ध नहीं करा पा रहा और बच्चों के खिलौने के नाम पर पुराने खिलौने है परंतु टूटे फूटे और रैम्प पर लगी काई बच्चों को बैठने तक दरी विभाग उपलब्ध नहीं करा सका जिसे एक हितग्राही ने दान में दी है। सबकुछ मौजूदा हालात तस्वीरे दिखा रही है।


वार्ड क्रं 12 और वार्ड क्रं 15 की आंगनबाडी के मौजूदा हालात

वार्ड क्रं 12 और वार्ड क्रं 15 की आंगनबाडी अभी कोरोना काल के बाद निर्मित की गई और इन आंगनबाडियों के मौजूदा हालातों की बात की जाए तो सबसे पहले तो आंगनबाडियां ही बच्चों की पंहुच से ही बहुत दूर है। और जहरीले सांपों से यह दोनों आंगबाडियां आएदिन जूझ रही हैं।

आसपास झाड झंकाडिया और शराब की बोतले आसपास ही मौजूद है। और शराबियों का अड्डा भी है


फर्श की पूरी टाईल्से धस गई है। पीने के पानी और डस्टबिन के लिए वकायदा प्लास्टिक की बाल्टियां मौजूद हैं

जहरीले जीवों के आवागमन के लिए पर्याप्त सुविधाएँ है। पाईप खुले पड़े है बाल हितैषी खेल खिलौने तो पुराने ही है क्योकि नए लगभग 2 वर्षाे से प्राप्त ही नहीं हुए परंतु पंखा तक विभाग नहीं जुटा पाया और आखिर में दानस्वरूप प्राप्त पंखा लगाया गया। और वार्ड क्रं 12 की आंगनबाड़ी का बाल हितैशी शौचालय भष्टाचारियों का शिकार हो गया। और इसकों देखने और संभालने वाले विभाग के जिम्मेदारों ने अभी हाल ही में निरीक्षण किया परंतु निरीक्षण तो पहले भी होता रहा होगा सुधार क्या हुआ पता नहीं। क्योकि वार्ड क्रं 15 रेल्वे फाटक के आसपास लगता है और आंगनबाडी का निर्माण वार्ड क्रं 12 खितौला मोड़ में शुलभ काम्पलेक्स के पीछे स्वास्थ केन्द्र के प्रांगण में बना दिया गया। जहां दोनों आंगनबाडियों में बच्चों की संख्या तो दर्ज है और बच्चें नहीं पहुंचते । और पोषण आहार और आंगनबाड़ी में आने वाला भोजन बच्चों के घर पहुंचने में क्या बाल विकास हो जाएगा। क्योंकि दोष किसी का नहीं है । सभी जिम्मेदारों ने अपना अपना कार्य बखूवी और कर्तव्य निष्ठ होकर पूरी ईमानदारी से किया है और कर भी रहे है। बस सवाल मत उठाओं और नन्हे बच्चों के प्राथमिक विकास और उनके उज्जवल भविष्य की कल्पना कागजों में पूरा हो रहा है।

क्या क्या होना चाहिए आंगनबाड़ियों में सुविधाएँ
एक मजबूत भवन, बरामदा जो बाधामुक्त होना चाहिए। बाधामुक्त प्रवेश द्वार, खेलने का स्थान, खेल सामग्री तथा बाल हितैषी खिलौने, साफसफाई, शुद्धजल और स्वच्छता सुविधाएँ, बाल – हितैषी शौचालय, मजबूत तथा रिसावमुक्त छत वाला भवन, मजबूत खिड़कियाँ और दरवाजे
विद्युत कनेक्शन और फर्नीचर, पंखे, विस्तर, बाल्टी, ब्रश, झाडु, साबुन, अध्ययन सामग्री, लंबाई मापने और बच्चे के विकास के संसाधन, वजन मशीन, डस्टबिन, सहित अनेक बाल विकास गर्भवती महिलाओं एवं सुविधाएँ और संसाधन शासन द्वारा निर्धारित है।
क्या है। आंगनबाड़ी
मध्य प्रदेश में आंगनबाड़ी की कार्यप्रणाली में 0-6 वर्ष के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पूरक पोषण, स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा, विद्यालय-पूर्व शिक्षा और रेफरल सेवाओं का पैकेज प्रदान किया जाता है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इन लाभार्थियों के वजन की जाँच करती हैं, घर-घर जाकर स्वास्थ्य सेवाओं में सहायता करती हैं, स्वास्थ्य संबंधी परामर्श देती हैं, और आवश्यक होने पर बच्चों को स्वास्थ्य केंद्रों पर रेफर करती हैं.
मुख्य कार्य और सेवाएँ
पूरक पोषण जो 0-6 वर्ष के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को स्थानीय सामग्री से बने पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना.
स्वास्थ्य जाँच – बच्चों का वजन करना, मातृ एवं बाल सुरक्षा कार्डों को बनाए रखना, और नियमित रूप से बच्चों की स्वास्थ्य जाँच में सहायता करना.
टीकाकरण – सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों के साथ मिलकर बच्चों के टीकाकरण को बढ़ावा देना और उसमें सहायता करना.
पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा- माताओं को शिशुओं को स्तनपान कराने, स्वच्छता और पोषण के बारे में परामर्श और शिक्षा देना.
विद्यालय-पूर्व अनौपचारिक शिक्षा- विद्यालय जाने के पूर्व नन्हे मुन्हे बच्चों को जो 3 से 6 वर्ष की आयु के बीच हो सकते है उन्हे गैर-औपचारिक शिक्षा और गतिविधियों का संचालन करना.
रेफरल सेवाएँ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, विकलांगता या अन्य गंभीर मामलों में लाभार्थियों को निकटतम स्वास्थ्य केंद्र या विशेषज्ञ के पास भेजने की व्यवस्था करना.
घर-घर दौरे- कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर माताओं और बच्चों का हालचाल पूछना, पोषण और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना.
विकास एवं पहचान- बच्चों में विकलांगता या कुपोषण जैसे मुद्दों की पहचान करना और संबंधित विभागों को सूचित करना.
कार्यान्वयन
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका कार्यकर्ता समुदाय में काम करती हैं और लाभार्थियों तक सेवाओं को पहुँचाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं. जिसका मार्गदर्शन एवं कार्यो की देखरेख के लिए एक सुपरवाइजर होती है तो अपने उच्च अधिकारी को समय समय पर आंगनबाड़ियों का निरीक्षण करके रिर्पोट सौंपती है।
सामुदायिक चेतना – यह कार्यक्रम सामुदायिक जागरूकता और सूचना, शिक्षा एवं संचार पर भी जोर देता है ताकि लोग स्वास्थ्य और पोषण के महत्व को समझ सकें.
परंतु तस्वीरों और मौजूदा हालातों को देखकर क्या लगता है। कि ऐसे मे संचालित आंगनबाडियों में बाल विकास संभव है। या बाल विकास की कल्पना की जा सकती है। और किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता जिला प्रशासन, तहसील प्रशासन, निर्माण एजेंसी और ठेकेदार महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मेदार एसडीओ, सुपरवाईजर, या आप और हम, जबाव जिम्मेदार ही दे पाएगे। क्योकि मौजूदा हालातों को देखकर जिम्मेदारों की जिम्मेदारियों और कार्य के प्रति लगन कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी तो कहीं नहीं झलकती। कहीं तो भ्रष्टाचार और लीपापोजी जारी है। परंतु कहां आप और हम समझदार है।
अगर सम्पूर्ण अंागनबाडियों की जांच कराकर कौन कौन दोषी है। उन दोषियों पर कठोर कार्यवाही करा दी जाए तो बचपन पर डांका डालने वालों का पूरा पर्दाफाश हो जाएगा। और उज्जवल भविष्य की कल्पना का सपना साकार हो सकेगा। क्योकि जब नींव ही कमजोर होगी। तो उज्जवल भविष्य की कल्पना कैसे की जा सकती है। आफिस की चार दिवारी में बैठकर कागजों पर विकास दिखाकर उन कागजों पर चिड़िया उड़ाने से विकास नहीं होता
इनका कहना है।
मै दिखवाता हूँ पहले लोकल अधिकरियों से बात करके आपको अवगत कराता हूँ।
सौरभ सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी, जबलपुर,
इनका कहना है।
सरकार द्वारा नगर पालिका प्रशासन को आंगनबाडियों के निर्माण के लिए राशि दी गई जिसके बाद सरकारी टेंडरों पर निर्माण कार्य कराया गया है। और जिम्मेदार विभाग को सौंप दिया गया था। जांच करा लेगे जो होगा अगत कराया जाएगा।
शैलेन्द्र कुमार ओझा, मुख्य नगर पालिका अधिकारी, सिहोरा
जर्जर हालत में आगनबाड़ी , जिम्मेदारों को नहीं फुर्सत, शायद कोई अन्होनी का हो रहा इंतजार









